बुधवार, 21 जनवरी 2009

सहज गीता ज्ञान

सहज गीता ज्ञान

गीता सहज शिक्षा
लेलो बोल बोल ,
हर हरि इच्छा
जीवन परीक्षा में,
मिलें शुभ समीक्षा

सत्य का साक्षात्कार है
नष्ट बस होता आकार है

मौत सत्य है, अमिट है
नष्ट होता, जो विकार है

ब्रह्माण्ड है नश्वर, अनष्ट
परिवर्तन बस साकार है

स्थिरता, अस्थिरता के
बदलाव के प्रकार है

चक्रो का बस चक्कर है
माया का अधिकार है

हर हरि इच्छा
हर में बस हरि है
हर हरि चमत्कार है




1
हरि का ध्यान होगा,
लगन से काम होगा,

सच सोच का मान होगा,
दुशकर्म पाप समान होगा,

जीवन सच्चा अच्छा होगा
हर हरि इच्छा
अब जो होगा अच्छा होगा

2
शून्य से उपजा,
माँ नजर आई,
कई और नजर आये,
रिस्ते कहलाये।

रीति को, रितु को कपडे पहनायें,
शादी के जोडे, कफन पहनायें,
मन माना मकान,
मान पहचान,
धीरे धीरे सब आये।
मन में घर कर गये,
कितने सायें,

कभी उठाया,
कभी चढाया,
कोई न भाया,
कोई अतिभाया।

हर हरि इच्छा,
तुमने जो लिया,
यहीं से लिया,
जो दिया,
यहीं पर दिया।

3
जन्म, म्रृत्यु, उपजाना
पाना, खोना, नष्ट होना,

प्रक्रुति का नियम था,
बस हो गया,
किसी के वस में ना था,
बस हो गया

दुःखी होना,
बस है पीडा पाना
सहज, सरल
जीवन गवाना

अब समझ गया
तो जीवन न गया
जीवन बस भा गया

हर हरि इच्छा,
तुमने क्या पैदा किया,
जो नष्ट हो गया।

! ! ! ! !




4

खूब महनत की,
पर चाहा न हुआ,

जो भी हुआ,
बस अनचाहा हुआ

छोड उस पर सोचना,
बस यही है सोचना,

भूल उसे जो न हुआ
खेल उस्से जो है हुआ

"हर हरि इच्छा"
जो हुआ अच्छा हुआ

! ! ! ! !
5
समझना इतना सा है,
सब नासमझने सा है,
जीवन जरूरी खेल है,
कर्म सिक्का ऊछालने सा है,
परिणाम बस मानने सा है.

जो गया स्वप्न सा था,
जो है बस जानने सा है,

जो वस में नहीं,
उसे मन में क्यो बोते हो,
हर हरि इच्छा,
तुम्हारा क्या गया,
जो तुम रोते हो.

! ! ! ! !

6
कुछ न अन्त है
बस अनन्त है
मृत्यु नही
सब जीवंत है
सत्य ही सत्य है
झूठ भी सत्य है
सब सत्य हरि
ब्रह्माण्ड हरि

हर हरि इच्छा
बस बोलो
हर हरि हरैयाहर दु:ख दूर करैया
हर हरि हरैयाबन सुख सूर गवैया
हर हरि हरैयालगाये तीर नैया
हर हरि हरैयाबन ब्रह्माण्ड रचैया


! ! ! ! !

7
खाली हाथ आये थे,
खाली हाथ जाना है,

दु:ख दर्द खुद का,
पैदा किया तराना है,

कुछ खोना बस,
खुद से एक बहाना है,

अब तक, यह सत्य
क्यो नहीं तुने जाना है

मेरे पास जो है मेरा है,
वह खोना नहीं चाहिये,
मन में कैसा वहम बो दिया,

हर हरि इच्छा
तुम क्या लाये थे,
जो तुमने है खो दिया.

! ! ! ! !




8
कोशिशें जारी है .
सफलता हारी है.
आस पास बेकारी है.
लाचारी लाचारी है

न सोच, जीवन ढो रहा है.
जो कभी न सोचा था, वह हो रहा है

सोच अब क्या, कैसी तेरी तैयारी है
सही सोच, सही महनत
ही नियती सारी है

महनत होता हरि वरदान
यही सोच बस दुलारी है
और याद रख,
हरि लीला न्यारी है.

अब सोच "प्यास" लिऐ
क्या क्या हो रहा है
हर हरि इच्छा,
जो हो रहा है,
कल के लिये अच्छा हो रहा है.


! ! ! ! !
9
कई जन्म से यहीँ पर हूँ
कल अशोक था, अकबर था,
आज जनता हूँ
कल कुछ और होउगाँ

एक सा हमैसा नहीं रहता
एक सा न भोगता, न सहता

जो तुम्हारा सत्य है वही होगा
हर हरि इच्छा
जो आज तुम्हारा है
कल किसी और का था
कल किसी और का होगा

! ! ! ! !
10
जीवन अंग की प्रति है
अंग अंग में गती है

नीयत लेती रहती गती है
गती में बस नियती है

बीना गती बस दुर्गति है
कर्म जीवन सम्पती है

हर हरि इच्छा,
कर्म ही जीवन की गती है
गती ही जीवन की रती है

! ! ! ! !
11
सूरज उगता है, ढलता है,
चाँद बढ्ता है, घटता है,

जीवन कभी व्यर्थ है,
कभी स-अर्थ है

शरीर कभी सवस्थ है,
कभी रोगो से ग्रस्थ है,

जीवन का अँत् म्रुत्यु है
म्रुत्य का अँत जीवन् है
जो हो रहा है
जो दिख रहा है, बस कम है

हर हरि इच्छा
व्यर्थ चिँता करते हो
परिवर्तन ही,
श्रष्टि का नियम है


! ! ! ! !
12
सब समझया बुझाया
सहयोग दे दे लुभाया
"प्यास" मेँ डूबा डूबा
मन मान न पाया

जब बुद्धि भ्रष्ट हूई
तब नियती दुष्ट हूई
समझ ले पिडायेँ है
खुद की ही ली हूई

हर हरि इच्छा
अब सोच ले अच्छा
कर्म करले अच्छा


! ! ! ! !

! tt sat

अरविन्द व्यास "प्यास"
13

जीवन जीना सहज सरल हो
सुख, दुख लेना सहज सरल हो

कर्म कर फल सहज स्वीकारो
सही सही सहज सोच विचारो

सोच ले, सहजता सरलता न हो
बस शंकोच की सघनता न हो

प्रतिक्रियायें बस सहज सरल हो
“प्यास” पूर्ति सहज सरल हो
हर हरि इच्छा
हरि का ध्यान सरल सकल हो
अब मोक्ष भी सहज सरल हो







14
सही ज्ञान बीना कहाँ योग है
बिन नियम सय्यम सब रोग है

जो सहज मिलता वही योग है
प्रकृति के बाहर बस सब रोग है

हर हरि इच्छा
मत सोचो क्या होता योग है
तुम्हारा ही, तुमसे सही सहयोग है

15
सब सब साया सा है
बस सब माया सा है

ब्रह्माणड सत्य है
क्यो भ्रम सा है

जो तू उससा है
वह तुझसा है

हर हरि इच्छा
बस हरि आसा है
प्यास हरि प्यासा है


16
हर हरि हरैया,
हर हरि इच्छा
यहीं गीता परम
सहज शिक्षा
मन से बोलो
हर हरि इच्छा
पल पल बोलो
हर हरि इच्छा

दु:ख न करे
कभी पीछा
सुख की दे दे
हरि भिक्षा

हर हरि इच्छा
जीवन परीक्षा में
मिलें शुभ समीक्षा

17
जब वह दाता
तू क्यो फकीर
सब वह करता
तू क्यो अधीर
जग सब उसका,
कर्म तेरी जागीर
वह सुख दाता,
तू क्यो गंभीर
वह है जीवन, नही जंजीर
उसका ज्ञाता, तू तो कबीर







18

चार परम कर्तव्य पहचानो
जन्नो को मानो
पालको को मानो
पलनो को मानो
पुर्ण होना है, तो
खुद को भी मानो

हर हरि इच्छा
हरि पहचानो
मोक्ष पहचानो