बुधवार, 30 नवंबर 2011

पहले अपनी समझ को समझना...फीर ही मेरी समझ को समझना

अटकना खटके, तो क्यो मटके....

भयहीन, भय भय, भारी भटके .... "प्यास"...



घटक घटक में, घट गये...

क्यो, जीवन से पट गये....



सुख से जो सट सट गये....

दुखो में आगे सीमट गये...



लटक लटक के पीट गये...

क्यो लार से, लीपट गये....



हटा हटा हो हलकट गये...

काट काट खुद कट गये... "प्यास"...



अन्याय मानव रचना...

न्याय प्रभु की रचना....

किसी का खून करना....

अपना है खून करना...

सफलता अपनी करना...

चाहे है घनघौर धरना ... "प्यास"...



नारी का नारायण नर...

नर का नारायण घर...

प्रीत को बीच में धर...

नर नारी तू न बिखर...

प्रभु का प्रताप बिखेर...

अब जीबन ले निखर.. "प्यास"...



मन तो है भया उतावला...

मन तो है भया बावला....

अंधेरे में देखे, समझे है...

कैसे भये जीवन उजला ... "प्यास"...



मानो सब मेरा है, जब तक डेरा है...

अंधेरे की न सोच, जब तक सवेरा है...

काम, मोह, लोभ, द्वेश और क्रोध...

सब माया का ही फैलाव और फेरा है .. "प्यास"...



मन भया है, कितना निराला...

हरा, लाल, पीला, निला काला...



जो काम का काम तमाम करे...

लाता बल से भारी भारी बला...



खुद का जीवन बदसुरत करने...

लाया बेहद्द सुंदर हूर सी बाला...



प्यास है, तो तालाब भी कई...

अब तल में जा लगा ले ताला...



नंगा खुबसुरत है, कपडे पहने...

सच को हमैशा, झूठ में ढाला....



नारायण नर व नर नारायण...

प्रभु तेने दिया, जीवन निराला.... "प्यास"...



नंगा नाच, नंगा नगाडा, नंगा न्याय...

नया नया नजारा, जमाने हाय हाय,,, "प्यास"...