1
सादगी भर भर सुंदर श्रुंगार परोसा है
सुंदर संध्या ने, प्यार संसार परोसा है
जीवन, संध्या आचल में, ना घबरा रे
प्रीत मिलेगी, संध्या प्रीत पे भरोसा है
2
संध्या आई है, प्रकृती महक रे
संध्या आई है ओ प्रीत चहक रे
धूप ने सिखाये कठीन सबक रे
विरह में मन करे, धक् धक् रे
अब मन मदमस्त हो, बहक रे
संध्या आजादी का, देती हक़ रे
3
संध्या लाये रात, लाये सवेरा
तू आये तो जगमगाए बसेरा
तुझमे ही मिलन का मर्म है
प्रीत करे है अभिनन्दन तेरा
4
संध्या आई, अब तू भी आजा प्रियतमा
तेरे बिन यह जीवन बस लगे थमा थमा
उलझन उलझन में, कहाँ सहज सुलझन
प्रीत वगैर, जितनी धड़कन उतनी तड़पन
जीवन, कहाँ सही सही जीवन, रहा कमा
प्रीत आ गई, अब तू भी आजा प्रियतमा
तेरे बीन यह जीवन बस लगे थमा थमा
5
तेरे ही लिये, सूरज उगा, तेरे ही लिये, चाँद उगा और रात हुई
संध्या तेरी प्रीत में ही, उजाले, अंधेरे बिच मिलन की बात हुई
तेरी आगोश में है सूरज डूबा, तुझ देख देख चाँद, सीतारे जागे
तुझे पा के प्रीत जागी, तेरी ही सदा पा रात में, रति ज्ञात हुई
6
संध्या सध ले, जरा तो सुध ले
मनवा आया है, यादें अदभुद ले
प्रीत विरह में, बड़ी पीड़ा उपजे
फिर तू है आती, प्रीत सुगंध ले
7
जगाते सुलाते उषा निशा जीत गई
इंतज़ार में कितनी संध्या बीत गई
जीवन प्रीत बिना, गम में है उबले
संध्या विरह के बना बना गीत गई
8
तेरा सुंदर रूप हमेशा सम्मुख दे
संध्या सुख दे, कभी न दुःख दे
बिन तड़पन, दिल में धड़कन दे
जन्मो जन्मो रहे, प्रीत अगन दे
तेरी राह न भटके, येसा रूख दे
जीवन में प्रीत हो, पूर्ण पर्याप्त
प्रयाप्त प्रीत कभी न हो समाप्त
जीवन प्राप्ती में, प्रीत प्रमुख दे
9
दिन भर दिल रहा, बड़ा थका हारा
संध्या ने आचल में ले उसे संभाला
तेरे शांत स्वरूप पर, सुंदर रूप पर
संध्या तुझ पर ही मरे है, दिलवाला
10
तुझमे रूप देखा, देखा न्यारा प्यार प्रिये
देखा संध्या का सुंदर सावला श्रुंगार प्रिये
नीला नभ, सूर्य लालीमा, निशा रागिनी
शांत समा, शर्द हवा बनी सुगंध वाहिनी
छाया, सुंदरतम संध्या रूप, गजब प्रिये
11
दिल में, बहार छा जाती है, संध्या जब आ जाती है
ख्याल लहराते, यादें फुदकती, तमन्नायें नाचती है
अह्सांस दमकते, लफ्ज चमकते, गजल गुनगुनाती है
जीवन में मस्त मस्त हो, जवान रवानी आ जाती है
दिल में, बहार छा जाती है, संध्या जब आ जाती है
12
संध्या आई, आई खुबसूरत शामत
हर नजरो में, आई नशीली शरारत
लिए शर्द, शांति, खुशबू और रंगत
हर नजरें चमके, बस इश्क बाबत
13
प्रीत को हमैशा, जगाती रहती है
संध्या मन में बहार बन बहती है
गठबंधन सा माहौल हो जाता है
जब संध्या रूपमती, महकती है
14
प्रीत के ही लिये, अवतरीत है
ओ संध्या यही तो बस रीत है
कुछ पल आये, ठहरे ओर गये
ना अंधेरा, ना उजाला मीत है
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अरविन्द व्यास "प्यास" |