सोमवार, 19 सितंबर 2011

नन्हे नगीने



नन्हे नगीने


प्रीत को छेड, प्रीत से खेल
जीवन भर बस. प्रीत झेल
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बिन तेरे, न जीना बेहतर , न मरना बेहतर
यह बता दे जालिम, तू क्यों है इतनी बेहतर
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आ भी जाओ के बस कुछ जवानी बाकी है
कुदरत की एक नायाब हसीन कहानी बाकी है
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जाओगे तो बाद यादों मे आओगे,,,
किसी भी तरह, जीवन मे आओगे.....
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वापसी का असल आशिक न सोचे
भागने का नकल आशिक न सोचे
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हर आई डाल सूखे है और टूटे है
यह बोल, क्यों किसी को लूटे है
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इश्क करे है और जताये नहीं
इतनी बड़ी चोट, बताये नहीं
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असल इश्क का कहाँ दीखता मंजर है
बड़ी गहराई है, सब बस अंदर अंदर है
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जीवन सच्चे, झूठे वादों का ना होता...
सिलसिला कभी, यादों का ना होता
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तू न मेरी प्रीत को छेड...
यू न जीवन, हार उधेड
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प्रीत में क्यो, कैसी होड...
यही प्रीत जीत का तोड
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प्रीत में न, ऊंच नीच...
जो सोचे, वह है नीच
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प्रीत को न डाल नकेल...
यू न तू जीवन से खेल
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प्रीत का ले धक्का झेल...
फिर ले खुशियों से खेल
अरविन्द व्यास "प्यास"