शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

सरल सहज संभव सत्य...

जिन्दगी दुसरो के लिये क्यो तरसे..
खुद पर ही, घनघोर क्यो न बरसे..."प्यास"

पल पालता है और पल ढालता है
पल का पलायन, पल उबालता है ..."प्यास"

सुलझे भी बडे उलझे
ज्ञान ज्योत जो बुझे...."प्यास"

मैं बहुत हुआ कठीन था
जो वह क्षीण क्षीण था...."प्यास"

बुद्धी बडी ही बहतर होती
जो तबीयत बदतर होती...."प्यास"

कुछ समझने का गुण सिखाते
बीज से पहले कुछ पेड उगाते....."प्यास"

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